Tuesday, October 7, 2008

कौम के ठेकेदार



दो चेहरे लिए घूम रहे हैं लोग ज़रा बच के रहना
दिल मे कुछ है जुबां पर कुछ और ज़रा बच के रहना!!
सफ़ेद कपडे पहने घूम रहे है दिल के काले लोग
खुद को साधू कहते हैं जो विलास रहे हैं भोग!!
किस कितना करे यकीं समझ नहीं है आता
एक से बड़कर एक पड़े हैं मोदी हो या टाटा !!
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई कहने को हम सब भाई
जिसका मौका जहा लगा औकात उसी ने दिखलाई !!
मज़हब के नाम पर धंदा करते हैं कौम के ठेकेदार
जो हमको लूट रहे हैं हम बने उन्ही के पहरेदार !!
न जाने कब जागेंगे हम और पहचानेंगे इनको
वही हमे लूट रहे हैं चुन कर भेजा था हमने जिनको !!